सावन की बहार-20-Aug-2022
कविता -सावन
बरसे लगै फुहार तो सावन बहार है
पुरुआ चलै बयार तो सावन बहार है
बहकै लगै बदन जब सरकै लगै चुनर
यौवन का हो निखार तो सावन बहार है
भीगा हुआ हो तन जब बिरहन की आंस से
साजन की हो पुकार तो सावन बहार है
बरसे लगै फुहार तो सावन बहार है
मन भाए न कुछ और सुन पपीहा की टेर को
बोलै लगे वन मोर देख घन धनेर को
दिल में उठे हिलोर तो सावन बहार है
बरसे लगै फुहार तो सावन बहार है
हरियाली सी हरे खेत की हरती है हर क्लेश
झूलों पर झूलते हुए उड़ने लगै जब केश
झिंगुर का हो झंकार तो सावन बहार है
बरसे लगै फुहार तो सावन बहार है
सावन की बूंद सींचता है प्रेम के रिस्तें
होइ जात हरा भरा तब ये दिल की ख्वाइशें
अपनों का आये याद तो सावन बहार है।
बरसे लगै फुहार तो सावन बहार है
मह मह महक भर जाए जब बेइल के फूल मा
सिहरै लगै बदन सना गलियन के धूल मा
लागै पड़ै तुषार तो सावन बहार है।
बरसे लगै फुहार तो सावन बहार है
अंबर में सतरंगी इंद्रधनुष की छंटा
मन में घिरै चहुंओर से घनघोर घन घटा
दादुर करै गुहार तों सावन बहार है।
बरसे लगै फुहार तो सावन बहार है
रचनाकार -रामबृक्ष आम्बेडकर
Pankaj Pandey
22-Aug-2022 01:15 PM
Nice
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Seema Priyadarshini sahay
22-Aug-2022 08:51 AM
बेहतरीन रचना
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Chetna swrnkar
21-Aug-2022 11:35 AM
Behtarin rachana 👌
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